Wed. Sep 10th, 2025
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कॉलेज की मोहब्बतें किताबों में नहीं, दिल की गलियों में बस जाती हैं।

वो आखिरी सीट – कॉलेज की अधूरी मोहब्बत

पहला दिन, पहली क्लास — और मेरी नजर सीधा जा टिकी थी उस लास्ट बेंच पर, जहाँ काजल बैठी थी। क्या ही सीन था, नीली जींस, हल्का गुलाबी टॉप, बाल खुले हुए, और वो आँखें… भाई, मानो उनकी गहराई में समुंदर डूब जाए। मैं बस देखता रहा, बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई। तब कहाँ पता था कि यही खामोशी, बाद में सबसे बड़ी याद बन जाएगी।

फिर क्या था, अगले दिन से मैंने उसी सीट का ठेका ले लिया — ठीक उसके सामने वाली। शुरुआत में हल्की सी स्माइल, कभी-कभी आँखों से हेलो, बस इतना ही। फिर एक दिन उसने खुद पूछ लिया, “तुम हर दिन यही क्यों बैठते हो?” थोड़ा गड़बड़ा गया मैं, लेकिन जवाब फेंक ही दिया, “क्योंकि यहीं से तुम दिखती हो।” वो हँसी… यार, उस हँसी में जैसे लाइफ का सारा स्ट्रेस फुस्स्स्स।

धीरे-धीरे बात बढ़ी। प्रोजेक्ट्स, ग्रुप असाइनमेंट, फेस्टिवल्स — कहीं न कहीं बहाने बन ही जाते थे साथ रहने के। कैंटीन की कॉफी, लाइब्रेरी की शांति, क्लास के बाद पार्क में बैठना — सब धीरे-धीरे रूटीन लगने लगा। पर हिम्मत कहाँ थी इज़हार करने की? कहीं खो न दूँ, यही डर लगा रहता था।

कॉलेज लाइफ की हर सुबह एक नई कहानी थी, और काजल उसमें मेरी सबसे प्यारी लाइन। दोस्त पूछते, “कुछ सीन है?” मैं हँस देता, लेकिन दिल के कोने में एकदम सीरियस ‘हाँ’ बजता था। असली वाला कॉलेज क्रश था, जहाँ शब्द कम पड़ जाते, और खामोशियाँ बहुत कुछ बोल जाती थीं।

एक बार बारिश में छत पर खड़े थे। मैंने पूछ लिया, “कभी ऐसा लगा कि सामने वाला ही सबकुछ है?” वो मेरी आँखों में देखती रही, फिर बोली, “हाँ… पर टाइम हमेशा सही नहीं होता।” उस जवाब में ही मेरा सारा सवाल घुल गया।

तीन साल उड़ गए पंख लगा के। साथ थे, फिर भी अधूरा सा कुछ। वो लास्ट बेंच, उसकी डायरी में लिखा नाम, साथ वाली फोटो — सब मेरी अधूरी मोहब्बत के हिस्से थे।

फाइनल ईयर आया, प्लेसमेंट्स शुरू। काजल को चेन्नई में जॉब मिल गई, मैं अपने शहर में ही। आखिरी दिन कैंटीन में कॉफी पी, उसने बोला, “याद रखना, कुछ अधूरी कहानियाँ ही सबसे प्यारी होती हैं।” और बिना अलविदा बोले चली गई।

समय चलता रहा, जॉब, लाइफ, सब सेट। लेकिन शाम को जब पुरानी फोटो देखता हूँ, तो उसकी आँखें फिर दिख जाती हैं — जैसे वही पहली क्लास। उसकी प्रोफाइल भी कई बार देखी, अब वो किसी और की लाइफ में है, शादी हो चुकी होगी शायद। खुश भी हो, क्या पता।

और मैं? मैं अब भी उसी अधूरी कहानी में अटका हूँ। लाइफ में सबकुछ मिला, पर जो खोया… वो सिर्फ काजल नहीं थी, वो एहसास था, जो सबसे प्यारा, सबसे मासूम था।

आज भी कॉलेज के सामने से गुजरता हूँ, दिल वहीं अटक जाता है — उस लास्ट बेंच पर। कभी-कभी सोचता हूँ, अगर बोल देता, तो शायद कहानी कुछ और होती। पर शायद नहीं भी। क्योंकि कुछ मोहब्बतें अधूरी रहकर ही मुकम्मल लगती हैं।

ज़िंदगी में सबकुछ हो जाता है, फिर भी एक चेहरा अधूरा रह जाता है — कभी-कभी वो किसी मौसम की तरह आता है, और बस अपनी खुशबू छोड़ जाता है। काजल मेरे लिए वही थी। सच्ची मोहब्बत, जो कभी मेरी हुई ही नहीं।

आज भी कभी कोई लड़की बाल कान के पीछे करती है न, तो एक पल को दिल फिर से पुरानी दुनिया में चला जाता है। शायद इसलिए नहीं कि वो काजल है, बल्कि इसलिए कि उसकी आदतें अब भी मेरे दिल में बसी हैं।

बस, यही थी मेरी कॉलेज वाली लव स्टोरी — अधूरी, लेकिन हमेशा जिंदा। कहीं किताब के आखिरी पेज पर फंसी हुई।

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