Sat. Aug 2nd, 2025
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दिल से दिल तक – कॉलेज की अधूरी मोहब्बत(Part-1)

ओह भाई, कॉलेज का पहला दिन – क्या सीन था! किसी के लिए नई दोस्ती, किसी के लिए पेट में चूहे दौड़ते डर, और कुछ के लिए… पहली मोहब्बत की झलक। मेरे लिए? सीधा दिल पर वार हो गया था, जनाब। जैसे मेरी ज़िंदगी की किताब का पहला चैप्टर ही इश्क की स्याही से लिखा गया हो।

मेरा नाम आरव है, छोटे शहर का बंदा, बड़े शहर के कॉलेज में दाखिल – सपनों का झोला लादे हुए। टॉपर बनने का सपना, बढ़िया जॉब, मम्मी-पापा को प्राउड फील करवाना – सब लिस्टेड था। लव-शव? कभी सोचा भी नहीं था। लेकिन सच्ची बता रहा हूँ, प्यार किसी हॉरर फिल्म के भूत जैसा है – कब आ जाए, कुछ पता ही नहीं चलता।

तो, मैं क्लासरूम की पहली बेंच पर अपनी नोटबुक खोल रहा था, तभी पीछे से बड़ी प्यारी सी आवाज़ – “Excuse me, क्या मैं यहां बैठ सकती हूँ?” पलटा तो भाई, टाइम स्लो मोशन में चला गया। उसके हाथ में किताबें, बाल खुले, चेहरा ऐसा मासूम, और मुस्कान – जैसे जिंदगी की टेंशन उसे छू के भी ना गई हो। नाम था अन्वी।

उसने जैसे ही पूछा, मैं literally हैंग हो गया। पहली बार किसी लड़की ने ऐसे सीधे-सीधे मुझसे बात की थी। धीरे से ‘हाँ’ बोला, वो मुस्कुरा के बैठ गई। उस दिन की हर चीज़ – उसकी खुशबू, उसकी हँसी, उसकी आँखों की चमक – सब फ्रीज फ्रेम में याद है।

क्लास खत्म होते ही पूछती है – “तुम नए हो?” मैंने सिर हिलाया। फिर अपना नाम बताया – “मैं अन्वी शर्मा, B.A. थर्ड ईयर।” सुन के थोड़ा चौंक गया, मैं तो सेकंड ईयर में था, पर उसकी मासूमियत में कुछ ऐसा था कि उम्र छोटी ही लगी।

बस फिर क्या, वो दिन और फिर आने वाले हफ्ते – दोस्ती जड़ पकड़ने लगी। कैंटीन में साथ बैठना, लाइब्रेरी में पढ़ते-पढ़ते गप लड़ाना, कभी बंक मार के कॉलेज की छत पर chill करना – ये हमारी रूटीन बन गई। छत, भाई, हमारी दुनिया थी – वो अपने बचपन के कांड सुनाती, मैं अपने गांव की मिट्टी की बातें करता।

एक शाम सूरज डूबता देख, उसने पूछा – “आरव, कभी लगा है कि किसी से प्यार हो रहा है?” मैंने थोड़ा मुस्कुरा के बोला – “शायद हाँ, नाम नहीं लिया अभी तक।” वो शरमा गई, जो और भी क्यूट लगने लगी। उसकी वो शरमाई हँसी – कसम से, दिल की दीवारों पर permanent graffiti बन गई।

सच कहूं, कभी सोचा नहीं था कि मैं भी इस मोहब्बत के चक्कर में पड़ जाऊँगा। पर अब तो बस, अन्वी ही दिल-दिमाग पर छाई थी। उसका इंतजार डेली रिचुअल बन गया, उसकी हँसी मेरी डेली डोज़।

फिर एक दिन ठान लिया, अब तो बोलना ही पड़ेगा। कॉलेज के गार्डन में बैठ के बोला – “अन्वी, अगर आज कुछ कहूं, तो दिल से सुनोगी?” वो चुप, फिर बोली – “हाँ आरव, बोलो।”

मैंने दिल कड़ा किया, एक सांस में बोल गया – “आई लव यू, अन्वी। तुम्हारी स्माइल मेरी जन्नत, तुम्हारा आँसू मेरी सज़ा। अगर तुम साथ हो, तो शायद मैं अच्छा इंसान बन जाऊं।”

उसने कुछ नहीं कहा। बस, उठी और बिना बोले चली गई।

वो रात? भाई, ऐसी टूटी-फूटी रातें फिल्मों में देखी होंगी। दिल भारी, पर कहीं न कहीं उम्मीद बाकी थी।

अगले दिन कॉलेज आई, तो मुझसे avoiding game खेलना शुरू – बात नहीं, नजरें नहीं मिलाना, पूरा cold war zone। मेरी तो दुनिया हिल गई। कई बार बात करने की कोशिश की, हर बार बस एक ही जवाब – “थोड़ा टाइम दो।”

टाइम खींचता गया – दिन हफ्ते बने, हफ्ते महीनों में बदले। फिर भी, मोहब्बत कम नहीं हुई। रोज़ वही गार्डन, वही क्लास, वही छत – मैं बस उसे ही ढूंढता।

फिर एक दिन, दो महीने बाद maybe, खुद मेरे पास आई। बोली – “आरव, नाराज़ नहीं थी। खुद से पूछ रही थी, क्या मैं भी तुम्हें उतना ही चाहती हूँ। अब जवाब मिल गया – हाँ, मुझे भी तुमसे प्यार है।”

उस पल, जैसे अंदर कोई मरा था, वो फिर से जिंदा हो गया। उस रात दोनों छत पर बैठे – चाँद, हवा, उसकी लहराते बाल, और मैं – बस उसकी आँखों में डूबा।

अब तो मोहब्बत लेवल 2 पर पहुँच गई थी – सांसें भी साथ, कॉलेज वाले भी जोड़ी पहचानने लगे। दुनिया जाए भाड़ में, हमें तो बस एक-दूसरे की company चाहिए थी।

लेकिन… किस्मत को शायद कोई नया ट्विस्ट सूझ गया था…

 

Part-2