चौपाल की ठंडी मिट्टी से निकला एक इश्क(गांव की प्रेम कहानी)
गर्मी की शाम थी, पूरी हवा में मिट्टी की वो ताजगी जैसे किसी पुराने गाने की धुन हो। सोनपुर गाँव की चौपाल, जहां हर दिन सूरज ढलने के बाद लोग जमा होते—कुछ गप्प, कुछ हंसी, बच्चों की शरारतें, और वक़्त की रफ्तार धीमी सी लगती। इसी चौपाल के नीचे, पुरानी नीम की छांव में, एक अजीब सा प्यार भी अंकुरित हो रहा था। वो वाला प्यार, जो फिल्मों में होता है, पर यहाँ गांव के रीति-रिवाजों की जंजीरों में जकड़ा हुआ।
लालाराम—नाम सुनने में जितना आम, उसके जज़्बात उतने ही खास। उसकी आंखों में मिट्टी के रंग का सच्चा इश्क था, सीधा-सादा, एकदम देसी। जब भी वो गुड़िया को देखता, मुस्कान खुद-ब-खुद उसकी शक्ल पर आ जाती। गुड़िया—गांव की नई लड़की, शहर से आई थी, चेहरे पर अजीब सी चमक, लेकिन आंखों में नीम की छांव जैसी ठंडक। उसकी मुस्कान ऐसी कि चौपाल पर बैठे सब जैसे एक पल को सांस रोक लेते, मानो कोई जादू चल गया हो।
एक दिन लालाराम ने देखा, गुड़िया खेत की पगडंडी पर जा रही है। बेचारा खुद-ब-खुद उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। गुड़िया मुड़ी, मुस्कराई, और चुपचाप आगे बढ़ गई। बस, उस एक मुस्कान में जैसे लालाराम की पूरी दुनिया बदल गई। अगले कुछ हफ्तों में, हर जगह उनकी मुलाकातें—कभी रेडियो की धीमी आवाज़ के साथ, कभी टूटती दीवारों के साये में—बिना बोले ही सबकुछ कह जाती थीं।
धीरे-धीरे गांव वालों को भी भनक लग गई—ये दोस्ती असल में मोहब्बत है। और गांव? गांव की सोच तो खांटी देसी, बंधी-बंधाई। “जमींदार की बेटी, किसान का बेटा? ये कैसे चलेगा?” पंचायत ने हुकुम सुना दिया, गुड़िया के बाप ने लड़की को वापस शहर बुला लिया। जैसे अचानक कोई तूफान आया और सबकुछ बहा ले गया—गुड़िया की हंसी, उसकी उम्मीदें, और लालाराम का दिल।
लालाराम उस शाम चौपाल पर ही बैठा रहा—नीम की ठंडी छांव, लेकिन दिल में तपता रेगिस्तान। उसकी आंखों की चमक जैसे मिट्टी में घुल गई। उसके बाद से गांव की रौनक ही गायब हो गई, लेकिन मिट्टी की खुशबू में अब भी उस अधूरे प्यार की तासीर बाकी थी।
वक़्त बीतता गया, मगर लालाराम के अंदर का अंधेरा नहीं गया। बारिश में उसकी आंखों में पानी, फसलों की हरियाली में एक सूखा सा दर्द। लोग कहते, “अब उसमें वो बात नहीं रही।” अधूरी नींद, बिगड़ी फसल, और ज़िंदगी का खालीपन—सबकुछ बदल गया। लेकिन उसका दिल? अब भी उसी मुस्कान के लिए धड़कता था, उसी गुड़िया के लिए, जिसमें सच्चाई और नर्मी दोनों थी।
फिर एक दिन, गांव में स्वास्थ्य शिविर लगा। शहर से डॉक्टरों की टीम आई। और उसी भीड़ में—गुड़िया! अब वो दो बच्चों की मां, माथे पर वक्त की लकीरें, मगर आंखों में वही मासूम चमक। लालाराम और गुड़िया—एक पल के लिए वक़्त थम सा गया। दोनों की खामोशी जैसे पूरी चौपाल पर छा गई। कोई कुछ नहीं बोला, मगर दिलों की धड़कनों की आवाज़ सबकुछ बयान कर रही थी।
गुड़िया आकर नीम के नीचे बैठ गई। धीमे से बोली—बस एक शब्द, “लालाराम।” उसके बाद आंसू, जैसे कोई पुरानी चिट्ठी खुल गई हो। गुड़िया ने जेब से एक लाल चिट्ठी निकाली, नीम की जड़ों में रख दी। वो चिट्ठी थी—यादों की, अधूरी ख्वाहिशों की, और इश्क की जो कभी खत्म नहीं होता।
लालाराम ने पढ़ा, गुड़िया ने लिखा था—
‘मेरी ज़िंदगी अब किसी और राह पर है, पर दिल अब भी तुम्हारे नाम पर धड़कता है। तुम्हारी खुशियों में मेरी दुआ है, और हमारा प्यार—वो कभी मिटेगा नहीं। चौपाल की शामें, नीम की छांव, मिट्टी की खुशबू—ये सब अब भी तुम्हारे साथ है।’
लालाराम की आंखों से आंसू मिट्टी में मिल गए। मानो उस मिट्टी की खुशबू और गहरी हो गई। गांव में एक अनकही दुआ गूंज गई—जो प्यार चौपाल पर शुरू हुआ था, उसका नाम सच्चाई रहेगा।
गुड़िया चली गई, अपने बच्चों को लेकर, लेकिन हवा में एक कसम छोड़ गई—एक अधूरी कहानी, जो अब भी नीम की छांव, चौपाल की मिट्टी, और दो टूटे दिलों में जिंदा है।
लालाराम? अब भी वही चौपाल, वही नीम, लेकिन आंखों में एक सुकून—प्यार कभी मरता नहीं। बस, अपना रूप बदल लेता है।
कहानी खत्म नहीं हुई, बस ठहर गई—गांव की मिट्टी में, रात की खामोशियों में, और हर उस दिल में, जिसने कभी सच्चा प्यार महसूस किया हो।
Nice Story