यार वो स्कूल के दिन, स्कूल लाइफ
बस नाम सुनते ही दिल कहीं और भाग जाता है, है ना? ये पोस्ट उसी बचपन की गलियों के नाम, जहाँ जिंदगी बस दोस्त, टिफिन और यूनिफॉर्म की सलवटों तक सिमटी रहती थी। फुल मासूमियत, फुल मस्ती – और सच कहूँ तो उस वक्त “टेंशन” नाम का कोई शब्द हमारी डिक्शनरी में था ही नहीं।
कभी सोचते हो, कब सब इतना उलझ गया? पहले तो बस सुबह उठो, आँखें मलते हुए मम्मी की डाँट खाओ, टिफिन पकड़ो और भाग स्कूल की ओर। रास्ते में साइकिल हो या पैदल – मजा ही कुछ और था। होमवर्क पूरा किया या नहीं, किसे फर्क पड़ता था? भगवान भरोसे चल रहा था सब।
क्लासरूम के बाहर की शरारतें असली हाईलाइट थी। कोई ब्लैकबोर्ड पे कार्टून, कोई दरवाजे के बाहर – टीचर आए या ना आए, हमें क्या! और फेयरवेल – भाई, उस दिन सब मॉडल बन जाते थे, लेकिन असली इमोशन तो तब फूटता था जब गले लगकर रो लेते थे – “भूलना मत, कॉल करना!” फिर पता चला, लाइफ में वही दोस्त कहीं खो गए।
नोटबुक के आख़िरी पन्ने पे दिल बनाना, लंच ब्रेक में झुंड में खाना, बैकबेंच पे गप्पें – सब किसी पुरानी फिल्म की तरह घूमता है दिमाग में। फेवरेट टीचर, सबसे डरावनी टीचर – आज उनकी डाँट भी याद करके हँसी आती है। और झगड़े? कभी सीट के लिए, कभी पेंसिल के लिए – लगता था दुनिया यहीं खत्म, अगले दिन सब सेट। “इगो” नाम की चीज़ तो शायद किसी और ग्रह पे थी।
हर क्लास में एक बच्चा – जो हर टाइम कुछ ना कुछ खाता रहता था, और एक जिसने आज तक होमवर्क नहीं किया। टीचर की मिमिक्री, म्यूज़िक क्लास की तालियाँ, और वो शरारती लोग – आज वही सबसे याद आते हैं। और सच बताऊँ, सबसे सीधे-सादे दिखने वालों के किस्से तो टॉप क्लास होते हैं।
स्कूल ट्रिप्स – त्योहार से कम नहीं! घर से पैसे मिले, रास्ते में गाने, मस्ती, टीचर की डाँट से बचना – आज सब ड्रीम सा लगता है। बोर्ड एग्जाम – उस टाइम टेंशन फुल ऑन, अब नाम लेते ही हँसी आ जाए। किसने नोट्स दिया, किसने गेस पेपर पढ़ा, रिजल्ट के दिन धड़कन – सब अलग ही लेवल था।
और हाँ, स्कूल में पहली क्रश – नाम सुनते ही चेहरा लाल, दोस्त छेड़ते, अंदर से फीलिंग्स मस्त। लव लेटर लिखना, गिफ्ट देना – अब सब सोच के हँसी आती है। लेकिन वो फीलिंग – मासूमियत भरी, बिना किसी डर के, वही पहली मोहब्बत थी शायद।
फिर ग्रेजुएशन आया, लाइफ एकदम तेज़ – पीछे मुड़ने का टाइम ही नहीं। लेकिन दिल है कि वही स्कूल की गलियों में भाग जाता है। आज जिनका नाम फोन में धूल खा रहा है, वही कभी हमारी पूरी दुनिया थे। “फ्रेंड्स फॉरएवर” लिखकर ऑटोग्राफ लेते थे – अब व्हाट्सऐप पर भी नज़र नहीं आते।
असल सच्चाई? स्कूल में हम जैसे थे, वैसे ही थे – बिना नकाब, बिना दिखावे। रोल नंबर से पहचान, लेकिन दोस्ती दिल से थी। वो बेंच, सीढ़ियाँ, दीवारें – सब हमारे सपनों के गवाह हैं।
अब जब खुद की लाइफ में उलझे हुए हैं, कभी पुराना फोटो एल्बम, कभी पुराने फ्रेंड की प्रोफाइल या फिर दिल के किसी कोने में वो स्कूल की यादें टपक पड़ती हैं। स्कूल लाइफ – जिया भी, और खोने का ग़म भी कभी पुराना नहीं होता।
शायद इसलिए, आज भी स्कूल के सामने से गुजरते हैं तो आँखें गीली हो जाती हैं, और दिल में बस एक ही ख्याल आता है – काश…
Nice story
Very nice