अनजान सा इश्क मेरा भाग-1 (Romantic Love Story)
कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है, जहाँ न हम खुद को पहचान पाते हैं, न अपने जज़्बातों को। दिल की गहराइयों में कहीं कोई अनकहा सा अहसास चुपके से जन्म लेता है और बिना इजाज़त लिए हमारी रूह तक में उतर जाता है। शायद इसे ही लोग मोहब्बत कहते हैं। लेकिन मेरी मोहब्बत कुछ अलग थी, क्योंकि वो एक अनजान सा इश्क था… एक ऐसा इश्क जिसे मैंने चाहकर भी कभी नाम नहीं दिया।
वो दिन आज भी मेरी यादों में ताज़ा है, जब मैंने पहली बार उसे देखा था। न जाने क्यों, भीड़ भरे उस रास्ते पर उसकी मुस्कान ने मेरी नज़रें रोक ली थीं। चेहरे पर कोई खास साज-सज्जा नहीं थी, पर आँखों में एक अजीब सी मासूमियत थी। शायद इसी मासूमियत ने मेरे दिल को छू लिया।
मैंने खुद से कहा – “ये कौन है? और क्यों अचानक से मेरा दिल इसके लिए इतनी बेचैनी महसूस कर रहा है?”
पर उस वक्त मेरे पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था।
दिन बीतते गए, लेकिन उस अजनबी लड़की की छवि मेरे मन में गहराती चली गई। वो अनकहा सा ख्याल, वो अनजानी सी मोहब्बत – मुझे हर रोज़ उसकी यादों के समंदर में डूबो देती थी।
कभी-कभी सोचता, शायद ये सिर्फ़ एक क्रश है… पर हर सुबह जब उसकी यादों के साथ मेरी नींद खुलती, तो समझ आता कि ये कुछ और ही है। शायद यही मेरा अनजान इश्क था।
उससे मिलने का कोई ठिकाना नहीं था, न ही बात करने का कोई बहाना। लेकिन दिल तो पागल है, उसे बहाने चाहिए ही कहाँ? जब भी मैं अकेला होता, उसकी हँसी मेरे कानों में गूंजती। जब भी कोई उदासी घेरती, उसकी आँखों की चमक मेरी उदासी को तोड़ देती।
मैंने कई बार खुद को समझाया कि ये सब सिर्फ़ एक ख्वाब है। लेकिन इश्क़ ख्वाबों में कहाँ सिमट पाता है? वो तो हक़ीक़त बनकर हर पल साथ चलता है।
मेरी ज़िंदगी पहले बिल्कुल साधारण थी – कॉलेज जाना, दोस्तों के साथ वक़्त बिताना, पढ़ाई और घर की जिम्मेदारियाँ। लेकिन अब हर चीज़ में एक नई रौनक थी। सड़कें वही थीं, लोग वही थे, पर सब बदल सा गया था। क्योंकि मेरे दिल के किसी कोने में अब “वो” थी।
धीरे-धीरे मैंने उसकी आदत बना ली थी। मैं उसे रोज़ उसी जगह देखने की कोशिश करता जहाँ पहली बार देखा था। कभी-कभी वो दिख जाती, और कभी नहीं। पर उसकी एक झलक भी मेरी पूरी दिन की थकान मिटा देती।
मुझे नहीं पता था कि मैं उसके लिए क्या हूँ। शायद उसके लिए मैं भीड़ में एक आम चेहरा ही था। पर मेरे लिए वो मेरी ज़िंदगी का सबसे खास हिस्सा बन चुकी थी।
उसके हर हाव-भाव में, हर मुस्कान में, मुझे मोहब्बत नज़र आती। मैंने तो उसे अपना मान लिया था, भले ही उसने कभी मेरी ओर नज़र उठाकर देखा तक नहीं।
एक दिन अचानक ऐसा हुआ कि वो मुझे पास से गुज़रते हुए दिखी। दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। हिम्मत जुटाकर मैंने हल्की सी मुस्कान दी, और उसने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया।
वो मुस्कान मेरे लिए किसी खज़ाने से कम नहीं थी। पहली बार लगा कि शायद मेरी मौजूदगी उसने महसूस की है। उसी दिन मैंने तय कर लिया – चाहे ये मोहब्बत कितनी ही अनकही क्यों न रहे, मैं इसे अपनी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत अहसास मानकर जिऊँगा।
उसके बाद हमारी मुलाक़ातें यूँ ही होती रहीं। कभी सड़क पर, कभी कॉलेज के पास, कभी किसी लाइब्रेरी में। लेकिन हमने कभी बात नहीं की। न उसने पहल की, न मैंने हिम्मत जुटाई।
शायद इसीलिए ये इश्क़ “अनजान सा” ही रह गया।
कभी-कभी मन करता कि जाकर सब कह दूँ, लेकिन डर था… कहीं वो दूर न चली जाए, कहीं ये मासूम सा रिश्ता टूट न जाए। क्योंकि उसके साथ कोई रिश्ता था ही कहाँ? बस मेरी दिल की गहराइयों में बसी उसकी यादें ही तो थीं।
मेरे दोस्त अकसर मज़ाक में कहते, “क्यों इतना खोए रहते हो? लगता है किसी को दिल दे बैठे हो।”
मैं हँसकर टाल देता, पर अंदर से उनकी बात सही लगती।
हाँ, मैंने किसी को दिल दे दिया था। लेकिन किसे? एक अनजान को…
और शायद यही मेरे इश्क़ की सबसे बड़ी खूबसूरती थी।
उसकी मौजूदगी ने मुझे बदल दिया था। मैं पहले से ज्यादा ज़िम्मेदार, ज्यादा खुशमिज़ाज हो गया था। हर काम में एक नई ऊर्जा थी। शायद यही मोहब्बत का असर होता है।
लेकिन इस मोहब्बत की सबसे अनोखी बात ये थी कि इसमें कोई लालच नहीं था, कोई उम्मीद नहीं थी। ये एक तरफ़ा था, मगर बेहद सच्चा।
मैंने कई बार सोचा – क्या ये अधूरी कहानी यूँ ही चलती रहेगी? क्या कभी मुझे उससे बात करने का मौका मिलेगा?
पर तभी दिल कहता – “क्यों सोचता है इतना? मोहब्बत को जी… बस यूँ ही अनकही रहने दे।”
और मैं मुस्कुरा कर चुप हो जाता।
Nice story
Good job