स्कूल की यादें – मासूम दोस्ती और अधूरी चाहत
पहली घंटी की आवाज़ जैसे ही पूरे स्कूल में गूंजी, मेरा दिल भी उसके साथ धड़कने लगा। सुबह की ठंडी हवा, हाथ में किताबें और चेहरे पर हल्की-सी घबराहट – यही मेरी नई जिंदगी की शुरुआत थी। यह मेरी जिंदगी का वह दौर था, जब बचपन धीरे-धीरे जवान होने की दहलीज पर कदम रख रहा था। स्कूल की यूनिफॉर्म पहनकर, बालों पर तेल लगाकर, कंधे पर बैग डालकर जब मैं स्कूल की ओर चला था, तो शायद मुझे अंदाजा भी नहीं था कि यह सफर मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी यादों में बदल जाएगा।
स्कूल का गेट पार करते ही जैसे कोई अलग ही दुनिया सामने आ गई थी। चारों तरफ बच्चे, कोई हँस रहा था, कोई खेल रहा था, कोई अपने दोस्तों के पीछे भाग रहा था। मेरे कदम थोड़े धीमे पड़ गए, लेकिन फिर भी मैंने साहस किया और क्लास की तरफ बढ़ा। उस वक्त मेरे लिए सब कुछ नया था – क्लासरूम की दीवारें, ब्लैकबोर्ड, चॉक की खुशबू, और सबसे बढ़कर वो अनजान चेहरे जो मुझे देख रहे थे।
मेरी नजर उन सब में एक चेहरे पर जाकर थम गई। वो चेहरा बहुत मासूम था, जैसे अभी-अभी किसी तस्वीर से बाहर निकला हो। उसकी आँखों में एक चमक थी, जो किसी भी उदास मन को खुश कर दे। मुझे नहीं पता क्यों, लेकिन उस पल मैंने महसूस किया कि ये चेहरा मेरी जिंदगी में किसी खास जगह बनाने वाला है।
दिन बीतते गए और धीरे-धीरे स्कूल की जिंदगी रंगीन होने लगी। सुबह की प्रार्थना, क्लास टीचर की डाँट, दोस्तों के साथ लंच शेयर करना, और छुट्टी की घंटी का इंतजार – सब कुछ एक रूटीन बन गया था। लेकिन इस रूटीन में सबसे प्यारी चीज थी उसके साथ बिताए गए छोटे-छोटे पल। वो लड़की, जो मेरी क्लास में बैठती थी, धीरे-धीरे मेरी सबसे अच्छी दोस्त बन गई थी।
हम दोनों अक्सर एक-दूसरे की कॉपियां शेयर करते, कभी नोट्स लिखकर देते, कभी होमवर्क में मदद करते। उसकी मुस्कान मेरे दिन की शुरुआत और उसका अलविदा मेरे दिन का अंत बन गया था। मुझे आज भी याद है, जब पहली बार उसने मेरा नाम पुकारा था, तो मुझे ऐसा लगा था जैसे पूरी क्लास में सिर्फ उसी की आवाज गूंज रही हो।
स्कूल की लाइब्रेरी में जब हम साथ बैठकर किताबें पढ़ते थे, तो अक्सर हमारी बातें किताबों से ज्यादा लंबी हो जाती थीं। मैं अक्सर उससे पूछता, “तुम्हें कहानियाँ ज्यादा पसंद हैं या कविताएँ?” और वो हमेशा हंसते हुए कहती, “कहानियाँ, क्योंकि उनमें जिंदगी छुपी होती है।” शायद यही वजह थी कि हमारी कहानी भी धीरे-धीरे किताब के पन्नों की तरह खुलने लगी थी।
खेल के पीरियड में जब सब मैदान में क्रिकेट या फुटबॉल खेलते, तो हम दोनों अक्सर छांव में बैठकर बातें करते। वो अपने सपनों के बारे में बताती – कि उसे पेंटिंग्स बहुत पसंद हैं और एक दिन वो बड़ी आर्टिस्ट बनेगी। मैं बस उसकी बातें सुनता और उसके सपनों में खो जाता। उसकी आँखों में जो चमक थी, उसने मुझे भी सपने देखने की आदत डाल दी थी।
लेकिन जिंदगी हमेशा आसान नहीं होती। स्कूल की मासूमियत के पीछे भी कई बार छोटी-छोटी मुश्किलें छुपी होती हैं। कई बार टीचर हमारी बातें पकड़ लेते और डाँट पड़ जाती। कई बार दोस्तों की खुसुर-फुसुर हमें परेशान कर देती। लेकिन इन सबके बावजूद, हमारी दोस्ती उतनी ही गहरी होती चली गई।
धीरे-धीरे मुझे एहसास होने लगा कि ये सिर्फ दोस्ती नहीं है, इससे कहीं ज्यादा है। उसके बिना मेरा दिन अधूरा लगता, उसकी हंसी मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी थी। जब भी वो नाराज़ होती, मुझे पूरी दुनिया उदास लगती। शायद यही प्यार था, लेकिन उस उम्र में हम इसे नाम देने से डरते थे।
मुझे याद है एक दिन बारिश हो रही थी। स्कूल की खिड़कियों से बाहर बारिश की बूंदें गिर रही थीं और क्लासरूम में थोड़ी-सी ठंडक थी। उसने धीरे से मेरी ओर देखा और कहा, “काश ये पल कभी खत्म न हो।” उस पल मेरी आँखों ने कहा था – हाँ, काश सच में ये पल कभी खत्म न हो। लेकिन मेरी जुबान खामोश रही। शायद डर था कि अगर बोल दूँ तो कहीं सबकुछ टूट न जाए।
हमारी कहानी ऐसे ही आगे बढ़ती रही। हर दिन एक नया किस्सा, हर दिन एक नई मुस्कान। लेकिन कहीं न कहीं मन में यह डर भी रहता था कि ये सफर हमेशा के लिए नहीं है। स्कूल की जिंदगी का एक अंत है और शायद उसके बाद सब कुछ बदल जाएगा।
लेकिन उस समय हम दोनों बस पल जीना जानते थे। लंच बॉक्स में पराठा और आम का अचार शेयर करना, गलती से एक-दूसरे की कॉपी पर नाम लिख देना, गलियारों में छुपकर हंसना, और क्लास टेस्ट में एक-दूसरे से चीटिंग करना – ये सब हमारी यादों का हिस्सा बन चुका था।
जैसे-जैसे साल बीत रहे थे, वैसे-वैसे हमारी दोस्ती और गहरी होती जा रही थी। अब हमारी बातें सिर्फ स्कूल तक सीमित नहीं थीं, बल्कि जिंदगी और भविष्य की तरफ बढ़ रही थीं। वो मुझे अपने सपनों के बारे में बताती, और मैं उसे अपनी छोटी-छोटी ख्वाहिशें सुनाता।
लेकिन इस सबके बीच एक सवाल हमेशा मेरे दिल में छुपा रहता – क्या ये दोस्ती ही है या उससे ज्यादा? और अगर ज्यादा है, तो क्या कभी मैं उसे कह पाऊँगा?
उस दौर की सबसे खास बात यही थी कि हम मासूम थे, सच्चे थे, और बिना किसी स्वार्थ के बस एक-दूसरे के साथ रहना चाहते थे। आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो लगता है कि वो दिन सच में जिंदगी के सबसे खूबसूरत दिन थे।
लेकिन किस्मत हमेशा हमारे हिसाब से नहीं चलती। हमारी कहानी में भी एक मोड़ आना बाकी था – एक ऐसा मोड़, जिसने हमारी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया।
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