Wed. Sep 10th, 2025
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आखिरी अलविदा

दिन बीतते-बीतते हमारी दोस्ती अब मेरे लिए सबकुछ बन चुकी थी। हर सुबह का पहला ख्याल वही होती, हर क्लास की पहली नज़र उसी पर जाती और छुट्टी की आखिरी मुस्कान उसके चेहरे से मिलकर ही पूरी होती। कभी-कभी मैं खुद से सवाल करता, “क्या ये सच में प्यार है? या बस दोस्ती की गहराई?” लेकिन जब भी वो कुछ देर के लिए भी दूर होती, तो मेरा दिल बेचैन हो उठता। शायद यही प्यार था, बस मासूमियत के रंग में रंगा हुआ।

स्कूल का माहौल वैसे तो हमेशा चहल-पहल से भरा रहता था, लेकिन हमारे लिए वो जगह अब किसी जन्नत से कम नहीं थी। लंच ब्रेक में छोटे-छोटे झगड़े, एक-दूसरे के टिफिन से पसंदीदा चीज़ उठाकर खाना, कॉपी पर पेन से नाम लिखकर फिर मिटा देना, ये सब हमारी कहानी की किताब के अनगिनत पन्ने थे।

लेकिन जिंदगी में कोई भी किताब हमेशा खुली नहीं रहती। धीरे-धीरे वक्त अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था। अब हम स्कूल के आखिरी क्लास तक पहुँच चुके थे। आने वाले महीनों में बोर्ड की परीक्षा थी और सबके चेहरे पर तनाव साफ़ दिखता था। पढ़ाई का दबाव बढ़ गया था, टीचर अब और सख्त हो गए थे, और दोस्तों के बीच भी बातें कम और किताबें ज्यादा होने लगी थीं।

फिर भी हम दोनों ने वक्त चुराकर अपनी दोस्ती और उस अनकही मोहब्बत को ज़िंदा रखा। लाइब्रेरी की खामोशियों में बैठकर बातें करना, कभी गलती से किताब में एक-दूसरे के लिए छोटे-छोटे मैसेज लिख देना, और कभी अचानक छुपकर एक-दूसरे को चॉकलेट देना – ये सब हमारी दुनिया का हिस्सा थे।

लेकिन उस दुनिया पर अब एक काला बादल मंडराने लगा था।

मुझे याद है, एक दिन उसने अचानक कहा, “शायद हम ज़्यादा दिन साथ नहीं रह पाएंगे।” मैं चौक गया। मैंने हंसकर पूछा, “क्यों? ऐसा क्यों कह रही हो?”

उसकी आँखों में नमी थी, उसने धीमी आवाज़ में कहा, “पापा का ट्रांसफर हो गया है। बोर्ड के बाद मुझे यहाँ से जाना होगा।”

उस पल मेरी दुनिया जैसे थम गई। क्लास में बच्चे पढ़ रहे थे, टीचर ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिख रहे थे, लेकिन मेरे कानों में सिर्फ वही शब्द गूंज रहे थे – “यहाँ से जाना होगा।”

उस दिन के बाद से हर दिन एक गिनती में बदल गया। हम दोनों जानते थे कि वक्त हमारे हाथ से निकल रहा है, लेकिन किसी के पास उसे रोकने की ताक़त नहीं थी।

अब हमारी हर मुलाकात में एक अजीब-सी खामोशी होती। पहले जहाँ घंटों बातें करते थे, अब चुपचाप एक-दूसरे को देखते रहते। शायद दोनों के मन में हजारों बातें थीं, लेकिन जुबान पर ताले लगे हुए थे।

परीक्षा का वक्त भी आ गया। हम दोनों ने एक-दूसरे की मदद की, नोट्स शेयर किए, सवालों पर चर्चा की। लेकिन हर पढ़ाई के पल के पीछे ये ख्याल भी छुपा होता कि ये हमारी आखिरी तैयारी साथ में है।

परीक्षा खत्म हुई और स्कूल का आखिरी दिन आ पहुँचा। उस दिन पूरा स्कूल जैसे जश्न मना रहा था। बच्चे एक-दूसरे पर रंग डाल रहे थे, टीचर शुभकामनाएं दे रहे थे, और सब अपनी-अपनी यादों को तस्वीरों में कैद कर रहे थे।

लेकिन मेरे लिए वो दिन किसी विदाई से कम नहीं था। मैं चाहता था कि वक्त थम जाए। मैं चाहता था कि कोई चमत्कार हो और वो कहीं न जाए। लेकिन जिंदगी हमेशा हमारी चाहतों से नहीं चलती।

उसने मुझे बुलाया और कहा, “चलो, आखिरी बार मैदान में चलते हैं।” हम दोनों मैदान के कोने में बैठ गए, जहाँ कभी हम खेला करते थे, बातें किया करते थे। हवा में अजीब-सी चुप्पी थी।

उसने मेरी तरफ देखा और कहा, “तुम्हें पता है, ये स्कूल की यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी। चाहे मैं कहीं भी जाऊं, तुम्हारी दोस्ती को कभी नहीं भूल पाऊँगी।”

मेरी आँखें भर आईं। मैं बहुत कुछ कहना चाहता था – बताना चाहता था कि ये सिर्फ दोस्ती नहीं है, ये उससे कहीं ज्यादा है। बताना चाहता था कि मेरी हर धड़कन उसके नाम से जुड़ी है। लेकिन मेरी जुबान जैसे पत्थर की हो गई थी।

मैंने बस धीरे से कहा, “तुम्हें भी कभी मत भूलना। चाहे वक्त कितना भी बदल जाए, याद रखना कि कोई था जो हमेशा तुम्हारे साथ रहना चाहता था।”

उसकी आँखों से आँसू गिरे। उसने अपने बैग से एक छोटा-सा पन्ना निकाला और मेरे हाथ में रखा। “ये मेरी तरफ से आखिरी गिफ्ट है।”

मैंने पन्ना खोला। उसमें एक पेंटिंग थी – एक लड़का और एक लड़की स्कूल के गेट पर खड़े थे, और उनके पीछे सूरज ढल रहा था। नीचे उसने लिखा था – “कुछ कहानियाँ कभी पूरी नहीं होतीं, लेकिन अधूरी होते हुए भी सबसे खूबसूरत होती हैं।”

उस पल मैंने जाना कि वो भी मेरी तरह ही महसूस करती थी, लेकिन शायद हम दोनों के पास हिम्मत नहीं थी कि इसे नाम दे पाते।

विदाई की घंटी बजी। वो उठी, मेरी तरफ देखा, हल्की-सी मुस्कान दी और बोली, “ख्याल रखना।”

उसके कदम दूर होते गए और मैं वहीं खड़ा उसे देखता रहा। वो मेरी जिंदगी से चली गई, लेकिन उसकी यादें वहीं रह गईं – स्कूल के गलियारों में, लाइब्रेरी की खामोशियों में, मैदान की हंसी में और मेरे दिल की गहराइयों में।

आज सालों बाद भी जब मैं स्कूल के उस रास्ते से गुजरता हूँ, तो लगता है जैसे उसकी आवाज़ अब भी हवा में गूंज रही है। स्कूल की वो आखिरी घंटी आज भी मेरे कानों में बजती है।

कभी-कभी सोचता हूँ, अगर उस दिन मैं अपने दिल की बात कह देता तो शायद कहानी कुछ और होती। लेकिन फिर याद आता है, उसकी पेंटिंग पर लिखा वो वाक्य – “कुछ कहानियाँ कभी पूरी नहीं होतीं, लेकिन अधूरी होते हुए भी सबसे खूबसूरत होती हैं।”

शायद हमारी कहानी भी वैसी ही थी। अधूरी, लेकिन सबसे खूबसूरत।

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